बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
भाषा-विज्ञान का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर -
संसार के समस्त प्राणियों में मनुष्य ही बुद्धिजीवी है। वह अत्यन्त प्रगतिशील व बहुमुखी विकास करने वाला रहा है। इसका मुख्य कारण है उसकी भाषा सम्बन्धी समृद्धि। भाषा के माध्यम से हुई उसने संसार के प्रत्येक देश व प्रदेश से सम्बन्ध बनाया है। भाषा की विविधमुखी जानकारी भाषा-विज्ञान से प्राप्त होती है। यद्यपि भाषा का समुचित ज्ञान कराने वाला व्याकरण होता है, परन्तु प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण है जो एक ही भाषा का निश्चित दिशा में शुद्धता व अशुद्धता का ज्ञान कराता है, जबकि भाषा-विज्ञान विभिन्न भाषाओं के पारस्परिक सम्बन्धों, उनके विकसित, अविकसित रूपों, ऐतिहासिक और पारिवारिक मूल्यों की उपयुक्त व्याख्या करता है। इसी कारण भाषा-विज्ञान की जानकारी मानव-जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मानव जीवन में भाषा-विज्ञान के अध्ययन की कितनी उपयोगिता है? उसका मूल्यांकन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है
१. भाषा सम्बन्धी विविध जिज्ञासुओं की तृप्ति - भाषा-विज्ञान व भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन कराता है। इसके माध्यम से विविध भाषाओं का बहुपक्षीय ज्ञान प्राप्त किया जाता है। मानव मन में भाषा के प्रति अनेक जिज्ञासाएँ बनी रहती हैं। जैसे- भाषा का प्राचीन रूप क्या था? उसमें दूसरी भाषाओं के शब्द क्यों आये? भाषा कब और क्यों परिवर्तित हुई? सभी मानव पशु-पक्षियों की भाँति एक समान भाषा क्यों नहीं बोलते? अदि प्रश्नों का समाधान भाषा-विज्ञान द्वारा ही संभव है। वही भाषा के प्रचलित, अप्रचलति, विकसित, अविकसित, लिखित, उच्चारित, देशी-विदेशी सहित्यक - आँचलिक रूपों के अन्तर को स्पष्ट करता है। भाषा की उत्पत्ति, विकास ह्रास, विकृति आदि के कारणों की खोज करता है। भाषा-विज्ञान से ही ज्ञात होता है कि भाषा की संरचना और ध्वनि या लिपि आदि पर किस प्रकार का व्याक प्रभाव था कोई भाषा किस भाषा-परिवार के अधिक निकट है और इसका क्या कारण है? भाषा पर राजनीतिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक प्रभाव किस रूप में पड़ा है। साथ ही, यह ज्ञात होता है कि भाषा एक परम्परागत वस्तु नहीं, यह तो एक अर्जित सम्पत्ति है। भाषा कठिनता से सरलता की ओर जाती है। कभी-कभी एक बोली धीरे- दीरे विकसित होकर राष्ट्रभाषा का रूप धारण कर लेती है। भाव यह है कि भाषा-विज्ञान भाषा सम्बन्धी अनेक जिज्ञासाओं को शान्त करता है।
२. प्राचीन संस्कृति का अन्वेषण - भाषा-विज्ञान के माध्यम से ही विविध भाषाओं के मूल स्त्रोत, उत्पत्ति काल व उद्गम स्थान आदि का ज्ञान होता है तथा प्राचीन से प्राचीनतम (राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं रीति-रिवाजों, रहन-सहन, आचार-विचार, नीति- अनीति, दोष- गुण आदि की खोज की जाती है। जैसे वैदिक भाषा द्वारा वैदिक युग की संस्कृति का बोध होता है। लौकिक संस्कृत द्वारा रामायणकालीन, महाभारत युगीन संस्कृति और सभ्यता का पता चलता है। कालिदास, दण्डी, बाणभट्ट आदि के साहित्य में तत्कालीन रीति-रिवाजों और मान्यताओं की झलक ज्ञात होती है, भाषा-विज्ञान द्वारा ही मानव जाति के पारम्परिक विकास की खोज करके प्राचीन संस्कृति और सभ्यता की जानकारी मिलती है तथा पता चलता है कि आर्यों का मूल स्थान कहाँ था? उनकी आचार संहिताएँ किस प्रकार की थीं? मर्यादा पुरुषोत्तम राम, श्रीकृष्ण, बुद्ध महावीर आदि के उपदेशों का भारतीय संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा? यह जानकारी हमें भाषा-विज्ञान से ज्ञात होती है जो सर्वथा अज्ञात थी? डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना का कथन है- "भाषा-विज्ञान ही हमें समझा सकता है कि कौन-सी संस्कृति विश्व में सबसे अधिक प्राचीन है और कौन-सी सभ्यता संसार में कब से विकसित हुई।'
३. साहित्यिक ज्ञान में समुचित योगदान भाषा-विज्ञान से ही ज्ञात होता है कि किस प्रकार एक प्रदेश में बोली जाने वाली बोली धीरे-धीरे परिनिष्ठित भाषा बनकर साहित्यिक भाषा बन गयी, जैसे मेरठ के आस-पास प्रयुक्त खड़ी बोली कालान्तर में भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी बन गयी और इसमें उच्च स्तरीय साहित्य का निर्माण होने लगा। इस साहित्यिक भाषा पर अंग्रेजी, संस्कृत आदि का प्रभाव किस रूप में रहा है। भाषा-विज्ञान ही साहित्यिक भाषा की संरचना, उसकी शब्दावली, पदावली व वाक्यों की बनावट आदि का ज्ञान कराता है तथा बताता है कि उसमें लाक्षणिकता व्यंग्यात्मकता, आलंकारिकता, वक्रोक्ति आदि का समावेश किस रूप में है और क्यों है? किस युग में श्रृंगारिक व अश्लील साहित्यक निर्माण हुआ और क्यों हुआ? धर्म, उपासना, भक्ति आदि साहित्य पर कब और क्यों प्रभाव पड़ा? कालिदास, हर्ष, माघ, भारवि बाणभट्ट आदि ने किन परिस्थितियों में साहित्य का निर्माण किया? उन पर किस प्रकारण का प्रभाव पड़ा? आदि साहित्यिक ज्ञान की जानकारी देने में भाषा-विज्ञान की अहं भूमिका है।
४. साधु-असाधु शब्दों की जानकारी - जहाँ व्याकरण शास्त्र शुद्ध शब्दों को ग्रहण करके अशुद्ध या विकृत शब्दों को असाधु कहकर उनकी उपेक्षा करता है, वहाँ भाषा-विज्ञान शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार के शब्दों पर विचार करता है तथा बताता है कि कहाँ पर शब्दों में स्वर या व्यंजन का लोप हो गया है? कहाँ स्वर का आगम हुआ है? कहाँ वर्ण-विपर्यय हो गया है? कहाँ उपधा का लोप हो गया है?
अर्थात् शब्द में विकार किस प्रकार आया है? भाषा-विज्ञान तत्सम शब्दों को ग्रहण करके तद्भव, देशज, विदेशी, विकृत अर्थविकृत शब्दों की उपेक्षा नहीं करता। वह उसमें कारण की खोज़ करता है। 'उपाध्याय' शब्द पाधा या झा शब्द किस प्रकार विकृति को प्राप्त हुआ। भाषा-विज्ञान इसके कारणों का अन्वेषण करता हैं। उसकी दृष्टि में साधु या असाधु दोनों प्रकार के शब्द भाषा के लिए उपयोगी हैं।
५. अर्थ बोध में सहायता - भाषा-विज्ञान शब्दों व पदों आदि के अर्थ बोध में अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है। वह अनेकार्थक शब्दों के प्रयोगों और कारणों की खोज करता है। शब्द के अर्थ परिवर्तन का ज्ञान कराता है। उदाहरणार्थ प्राचीन संस्कृत में 'मृग' शब्द सभी जंगली पशुओं के लिए प्रयुक्त होता था परन्तु कालान्तर में हिरण का पर्याय बनकर रह गया। 'शव' शब्द भारत में मृत शरीर के लिए आता है, परन्तु कम्बोज में गमन अर्थ में प्रयुक्त है। 'कर' शब्द संस्कृत में हस्त के लिए, हिन्दी में टैक्स के लिए या 'करवा' प्रत्यय के अर्थ में आता है, भाषा-विज्ञान बताता है कि कहाँ पर अर्थ का उत्कर्ष होता है, कहाँ पर अपकर्ष होता है तथा किस कारण अर्थ-विस्तार या अर्थ संकोच होता है। भाषा-विज्ञान शब्दों के अर्थ की उपेक्षा नहीं करता, बल्कि अर्थ-परिवर्तन आदि के कारणों की खोज करता है उसका समुचित समाधान करता है।
६. ध्वनियों का अनुशीलन - भाषा का मूल आधार है- ध्वनि। भाषा-विज्ञान भाषा और भाषाओं की ध्वनियों की उपयुक्त जानकारी देता है तथा बताता है कि प्राचीनकाल में कौन-कौन सी ध्वनियाँ थीं? उनमें किस प्रकार का परिवर्तन हुआ? कौन-सी ध्वनियाँ लुप्त हो गयीं और कौन-सी ध्वनियाँ नयी आ गयीं। उदाहरण के लिए, वैदिक संस्कृत में ५२ ध्वनियाँ थीं जो लौकिक संस्कृत में ४८ रह गयीं। ळ, ळह जिह्वामूलक, उपाध्यानीय ध्वनियाँ समाप्त हो गयीं। वैदिक ऋ, ॠ व लृ स्वरों का उच्चारण लौकिक संस्कृत में र व ल व्यंजनों के समान होने लगा। वैदिक भाषा उदात्त अनुदात्त व स्वारित का प्रयोग मन्त्रों के उच्चारण में होता था लौकिक संस्कृत में उनका लोप हो गया भाषा-विज्ञान ध्वनि-परिवर्तन के कारणों की खोज करता है। नई ध्वनियों के प्रयोग पर ध्यान देता है। भाषा के उच्चारण में होने वाले प्रादेशिक परिवर्तनों का अध्ययन करता है जिससे भाषा की ध्वनियों का अनुशीलन होता है।
७. लिपि - विकास की प्रेरणा - भाषा के दो रूप होते हैं - (क) उच्चरित (क) लिखित। जिस प्रकार भाषा के उच्चरित रूप में परिवर्तन पाया जाता है उसी प्रकार लिखित रूप में भी। प्राचीन काल में लिखने का साधक लेखनी और लेखक थे। वैज्ञानिक युग में टंकण व मुद्रण प्रणाली का अविष्कार होने से लेखन में पर्याप्त परिवर्तन आया है। संस्कृत भाषा में जहाँ ङ्, ञ्, ण्, न्, म्, नासिक्य वर्णों का प्रयोग किया जाता था जिससे लेखन में कठिनाई होती थी वहाँ हिन्दी में इनके स्थान पर अनुसार का प्रयोग किया जाता है। जैसे - अडू, अंक, मञ्जरी-मंजरी, घण्टा घंटा, मन्द-मंद, पम्पा पंपा आदि प्रयोग होने लगे हैं। भाषा-विज्ञान ने लिपि को सुगम और सरल बनाने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक यन्त्रों का आविष्कार किया है जिसमें 'कम्प्यूटर' अत्याधुनिक यंत्र है। जिसके माध्यम से भाषा की शुद्धता का अशुद्धता का शीघ्र ज्ञान हो जाता है। एक लिपि का दूसरा लिपि में भावों की परिवर्तनशीलता सहज या क्षणिक हो गयी है। अब इस दिशा में यह प्रयास चल रहा है कि कोई ऐसी लिपि बनाई जाए जिससे संसार की समस्त भाषाओं को सरलता से लिपिबद्ध किया जा सके। अतः भाषा-विज्ञान लिपि के विकास में अत्यन्त प्रेरणादायक है।
८. भाषाओं का पारस्परिक समन्वय - प्राचीन काल में एक व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन में एक या दो भाषाओं की जानकारी प्राप्त कर पाता था। किसी भी भाषा के ज्ञान के लिए उसे उसका दुरुह व्याकरण पढ़ना पड़ता था। जबकि भारत के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग भाषा प्रयोग की जाती थी, उनके उच्चरित व लिखित रूप परस्पर मिलते नहीं थे। विदेशी भाषा से तो भारतीय सर्वथा अनभिज्ञ थे। उनकी जानकारी प्राप्त करना मानो असंभव था। भाषा-विज्ञान के विविध भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया तथा संसार की समस्त भाषाओं का पारिवारिकं व आकृतिमूलक वर्गीकरण किया तथा देशी व विदेशी भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करके उनमें साम्य और वैषम्य का ज्ञान किया और इस प्रकार के आविष्कार किये जिससे एक भाषा को दूसरे भाषा में समझा जा सके। कम्प्यूटर जैसे आविष्कारों को करके भाषा-विज्ञान ने संसार की अनेक भाषाओं में समन्वय स्थापित किया है जिससे कोई भी व्यक्ति विविध भाषाओं का ज्ञान सहज रूप में प्राप्त कर सकता है।
६. विश्व में एकता की स्थापना - प्राचीन काल में प्रत्येक भाषा का सीमित क्षेत्र था। यद्यपि संस्कृत भारत की प्रमुखतम् भाषा थी, परन्तु इसकी शुद्धता और संकीर्णता के कारण इसका दायरा भी बहुत सीमित हो गया था। परिणामस्वरूप, अनेक प्रकार की प्राकृत भाषाओं का प्रयोग किया जाता था जो विशेषतः साधु-सन्तों व सामान्य जनता की भाषाएँ बन गयी थीं। जिसने शिक्षितों व अशिक्षितों में दूरी आने लगी थी तथा एक प्रदेश की प्राकृत भाषा दूसरे प्रदेश की प्राकृत भाषा से सर्वथा भिन्न होने से उन प्रदेशों में सम्पर्क सूत्र समाप्त होने लगे थे। विदेशी भाषाओं को म्लेच्छों की भाषा कहकर उन देशों से घृणा की जाती थी। अतः एक देश दूसरे देश की भाषा न जानने के कारण उनमें परस्पर सम्बन्ध नहीं थे। भाषा- विज्ञान ने प्रादेशिक और विदेशी भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया। विश्व की भाषाओं का अध्ययन करके उनमें समन्वय स्थापित किया। एक देश के लोग दूसरे देश की भाषाओं को जानने लगे, समझने लगे व बोलने लगे, परिणामस्वरूप, संसार के देशों में परस्पर सांस्कृतिक, व्यापारिक, आर्थिक व सामाजिक सम्बन्ध स्थापित हो गये। विभिन्न देशों ने सांस्कृतिक व आर्थिक व्यवस्थाओं का परस्पर आदान-प्रदान किया। भाषा-विज्ञान ने भी संस्कृत, जर्मन, लैटिन, ग्रीक आदि भाषाओं की समानता देखकर ही उन्हें एक ही परिवार की भाषा घोषित किया था। आज प्रत्येक देश एक दूसरे की भाषा को जानता है, बोलता है व समझता है जिससे विश्व में एकता स्थापित हो गयी है।
१०. दूरसंचार साधनों में सहायक - आज सभी देश एक-दूसरे से सम्बन्धित हो गये हैं। इसके लिए भाषा-विज्ञान की महती आवश्यकता है। भाषा-विज्ञान ही ध्वनि संकेतों का इतना सरल और सहज ज्ञान करता है कि दूर संचार व्यवस्था समस्त संसार में व्याप्त हो गयी है। प्रत्येक भाषा में इस प्रकार के संकेतात्मक शब्द प्रयोग किये गये हैं जिन्हें सभी समझने में सक्षम हैं। कम्प्यूटर आदि द्वारा दूर-संचार व्यवस्था को पर्याप्त व्यापक और सहजगाम्य बनाया गया है। इस प्रकार की तकनीकी शब्दावली आज के युग में भी प्रयोग की जा रही है जिसके माध्यम से सुदूरवर्ती देशों में सरलता से समाचार भेजे जा सकते हैं और उनके कथ्य को ज्ञात किया जा सकता है। भाषा-विज्ञान इस प्रकार की शब्दावली के निर्माण में अत्यन्त उपयोगी है।
११. वैज्ञानिक अध्ययन की ओर प्रवृत्ति - प्राचीन काल में प्रायः भाषा सम्बन्धी ग्रन्थ एक ही भाषा का एक दिशा में अध्ययन करते थे। यदि कोई व्याकरण शब्द था तो वह किसी एक भाषा के व्याकरण को ही प्रस्तुत करता था जिसमें शुद्ध शब्दों को अपनाकर अन्य शब्दों को त्याज्य समझा जाता था। यदि यास्क ने निरुक्त ग्रन्थ लिखा है तो वैदिक शब्दों का निर्वचन किया है, अन्य भाषा के शब्द यहाँ पर निरर्थक हैं 'कोष' में एक ही भाषा के शब्दों का संग्रह किया जाता था। भाषा-विज्ञान ने एक वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान की जहाँ पर एक नहीं बल्कि विविध भाषाओं का तुलनात्मक ऐतिहासिक व वर्तमान काल में अध्ययन किया गया। अध्ययन विस्तृत दायरे में किया गया।
१२. व्याकरण ज्ञान में सहायक - व्याकरण में शब्दों के शुद्ध रूप को कसौटी पर कस कर उनकी शुद्धता व परीक्षण किया जाता है तो भाषा-विज्ञान उन शब्दों के अर्थ को उनकी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रवृत्ति को उनकी ऐतिहासिकता को उनके विविध आधारों को तथा उनकी दार्शनिकता को देखता है। शब्दों की मौखिता और विकासात्मकता का भी अध्ययन करता है। परिणामस्वरूप, व्याकरण में नवीनता का संचार करता है अतः भाषा-विज्ञान व्याकरण के ज्ञान में सहायक सिद्ध होने के कारण व्याकरण का भी व्याकरण है।
इस प्रकार भाषा-विज्ञान मानव जीवन के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उसी ने मानव जाति को एकता में बाँधकर समस्त संसार को एक परिवार बना दिया है।
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- प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
- १. भू धातु
- २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
- ३. गम् (जाना) परस्मैपद
- ४. कृ
- (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
- प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
- कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
- करणः कारकः तृतीया विभक्ति
- सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
- अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
- सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
- अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
- प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
- प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
- प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
- प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
- प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
- प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।